तहजीब पनाह मांग रही है….मर्यादाओं का ताना-बाना टूट रहा है…बयानबाजियों का दौर चल रहा है…लोकतंत्र शर्मसार हो रहा है…सम्मान देने की परंपरा दम तोड़ रही है….सियासी विरोध अब निजी दुश्मनी में तब्दील हो रही है…सार्वजनिक जीवन अपनी गरिमा खो रहा है… लोकतंत्र शर्मसार हो रहा है..इस्पात मंत्री कठोर भाषा बोलते हैं…भाषा क्या होती है…बस कानों में पिघला इस्पात डाल लो तो भी तकलीफ कम होगी….हर बार बोलते हैं….उर्दू जैसी मीठी जबान में किसी की बेइज्जती करने का हुनर आजम खान से बेहतर कोई जानता नहीं है..सियासी परंपरा को शर्मसार करने का खास तजुर्बा रखते हैं जनाब…फे
हरिस्त थोड़ी लंबी है….धैर्य से सुनना होगा…खुर्शीद के चश्में से देखें तो विरोधी गटर के कीड़े हो जाते हैं..अजीब लगता है….अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले का वंशज विरोधियों को मजा चखाने की धमकी देता है….नेता बड़े हैं…बोल बड़े हैं…सब कुछ लार्ज टाइप का है…और अभद्र बयानबाजियों की लिस्ट बड़ी ही है..सहारनपुर के कांग्रेसी उम्मीदवार मोदी पर आपत्तिजनक बयान देते हैं..ये तो प्रतीक भर है….वरुण गांधी,औवेसी,राज ठाकरे इस परंपरा के नए पुरोधा है….राहुल गांधी समझाकर समझाकर खुद समझ चुके हैं…कांग्रेस की परंपरा बस कांग्रेसी ही नहीं समझ पाए….राष्ट्रवाद का नारा..देशप्रेम का जज्बा,डिफ्रेंस का दावा सब खोखला हो जाता है….जब वरूण का बयान का जिक्र आता है,समाजवाद खुद के होने का सबब पूछता है…समाजवाद आजम के बयानों से पानी मांगने लगता है….समाजवाद के सिपाही मुलायम दंगा पीड़ितों को एजेंट जो कह देते हैं….सोशल इंजीनियरिंग फेल हो जाती है…जब मायावती की जबान फिसल जाती है….हो रहा है….जमकर हो रहा है…बेशर्मी,बेअदबी सम्मान और परंपरा पर भारी पड़ रही है..सड़क से ससंद तक अभ्रदता के नजारे आम हो चुके हैं….मौसम चुनावी हैं तो ऐसे बयानों की तादाद बढ़ जरुर गई है….चुनाव आयोग नसीहत देकर कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है….समर्थक ताली मारते हैं….चाटुकार बयान की पैरवी करते हैं….नेता भी बवाल के बाद सफाई देते हैं….मीडिया के बयान को तोड़ने-मरोड़ने का हवाला देते हैं…बस सब जारी रहता है….क्योंकि सवाल वोट का है….आका को खुश करने का है….सुर्खियों में बने रहने का है…..जारी है….तमाशा……देखते रहिए….



