सेवा की पावन भावना कुटिल व्यापारिक चाल में तब्दील हो गई…सियासी नफा सिद्धांतों पर भारी पड़ रहा है… लोकतंत्र शर्मसार हो रहा
है…नैतिकता सिसकियां ले रही हैं…शुचिता ताक पर उदास बैठी है..सत्ता के लिए बाहुबलियों का साथ जरुरी हो गया है….कानून तोड़ने वाले संसद में कानून बनाने लगे हैं…सलाखों से संसद का सफर आसान हो रहा है…लोकतंत्र शर्मसार हो रहा है…अपराध और राजनीति का….नेता और दागियों का…खादी और कालिख का….गठंबधन हो रहा है.. जनतंत्र में जनता बेगानी हो गई है…नेता की नीयत सवालों में हैं…लोकतंत्र की बुनियाद में नमी आ रही है….वोट पाने के लिए…कुर्सी हथियाने के लिए…लोकतंत्र की अस्मिता का सौदा हो रहा है…लोकतंत्र शर्मसार हो रहा है..खादी के चोले में दाग लग रहे हैं…तो कहीं दागी ही खादी की खरीददारी कर रहे हैं….वोट की ताकत प्रतीकात्मक हो गई ..बाहुबल हावी हो गया है….माफिया माननीय बन रहा हैं… लोकतंत्र शर्मसार हो रहा है…..ये भी जान लीजिए कि सियासी दलों के पास पुख्ता सफाई है…दामन पर लगा दाग भाने लगा है…संविधान की शपथ…देशसेवा का प्रण…जनता की जिम्मेदारी…बस तकरीरों का हिस्सा हैं…खादी का चोला…गांधी टोपी…बस पहनावा ही रह गया….उसका विचारधारा से तलाक हो चुका है…सावधान जनतंत्र लाठीतंत्र में तब्दील हो रहा है लोकतंत्र शर्मसार हो रहा है…



