मौका है..अच्छा मौका है….दमखम दिखाने का…साख बचाने का….और हार को भी भुनाने का भी …जब जीतने में कुर्सी मिले और हारने में शहीद का दर्जा… तो भला कोई पीछे क्यों रहें…मोदी वाया काशी दिल्ली पहुंचने की तैयारी में हैं…तो दिल्ली से दिल्ली आने के लिए केजरीवाल ने भी वाराणसी को ही चुना…केजरीवाल ताल ठोंक रहे हैं…पब्लिक डिमांड पर अस्सी घाट में स्नान कर त्रिपुंड लगाकर चुनौती दे आएं हैं…अमेठी में युवराज को कविराज पटखनी देना चाहते हैं..तो अवध-ए-शाम लखनऊ में भी मुकाबला आयातित उम्मीदवारों के बीच हैं….गाजियाबाद से लखनऊ आए राजनाथ का
मुकाबला रीता बहुगुणा जोशी और मुंबई के स्थाई निवासी जावेद जाफरी के बीच होगा…ये दिलचस्प है…बेहद दिलचस्प…वडोदरा से मिस्त्री मोदी के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं…और इन सबके बीच चुनावी मैदान में दिग्गजों के खिलाफ धुरंधरों के उतरने की कोशिशों से कई स्थापित मानक भी टूटते नजर आ रहे है…सियासी दलों और बड़े नेताओं के अघोषित समझौते दम तोड़ रहे हैं….जो बरसों से चले आ रहे थे..वैसे ऐसा पहली बार नहीं हुआ है..पहले भी होता आया है…बस इस बार सुर्खियां ज्यादा मिल रही हैं..इलाहाबाद से बहुगुणा को अमिताभ बच्चन ने हराया था….बेल्लाली से सोनिया के खिलाफ सुषमा मैदान में थी…गोविंदा ने राम नाइक को धूल चटा दी थीमाधवराव सिंधिया के खिलाफ बाजपेई ने जोर-आजमाइश की थी…. …ऐसा होता आया है..और इस बार अच्छे से हो रहा है….मोदी के खिलाफ अल्वी लड़ने की चाहत रखते हैं….चिंदबरम हिंदी से पहले ही हार गए नहीं तो वाराणसी से वो भी लड़ सकते थे…मोदी-राहुल जैसे दिग्गजों के खिलाफ लड़ना मुनाफे का सौदा जो हैं..सवाल हार-जीत का नहीं..परिपक्कव होते लोकतंत्र का है…खूबसूरत होते गणतंत्र का….जनता जनार्दन का है….जो लोकतंत्र में सर्वोपरि है…



