इसे सियासी मजबूरी समझिए…सत्ता का समीकरण मानिए…या गठबंधनों के दौर में गठबंधन का पुराना नुस्खा कहिए…तीसरा मोर्चा दम भर रहा है..जो धर्मनिरपेक्षता की बुनियाद पर टिका है…कांग्रेस-बीजेपी के विरोध की ऑक्सीजन पर सुर्खियां पा रहा है…क्षेत्रीय क्षत्रपों की महत्वाकांक्षाओं की खाद से पनप रहा है…तीसरा मोर्चा अच्छी सेहत के लिए प्राणायाम कर रहा है…सत्ता का सपना सियासी
धुरंधरों को हाथ मिलाने को मजबूर कर रहा है..ये तीसरा मोर्चा ही है जो सिंहासन के लिए बेझिझक समझौते कर रहा है…जैसा सभी पार्टियां करती हैं…हैरत में मत पड़िएगा…परेशान होने की जरुरत नही है..ये वहीं मुलायम हैं जो भ्रष्टाचार,महंगाई जैसे मसलों पर कांग्रेस से नाराज दिखे…वक्त आने पर सदन से वॉक आउट किया…कांग्रेस को जीवनदान मिला..रुठने-मनाने का खेल जारी रहा..अब कांग्रेस का विरोध होगा…मुलायम का कठोर विरोध होगा…ये वहीं नीतीश कुमार हैं..जो 17 साल तक बीजेपी के सियासी हमसफर रहे…दिल्ली से लेकर पटना तक सत्ता सुख भोगा…दंगों के बाद भी कुर्सी पर बने रहे..मोदी सांप्रदायिक हैं समझने में 17 साल लगा दिए..अब कांग्रेस के भरोसे सरकार चला रहे हैं…अब बीजेपी-कांग्रेस का विरोध करेंगे…..ये वहीं लेफ्ट है जो यूपीए के पहले संस्करण में कांग्रेस के साथ सर्वहारा की भलाई के लिए जुड़े थे..अमेरिका से परमाणु समझौता हुआ…असर रिश्तों पर पड़ा…अब ये भी कांग्रेस का विरोध करेंगे…एक और अजीब बात है तीसरे मोर्चे के साथी चुनाव अलग-अलग लड़ रहे हैं..नतीजों के बाद सत्ता के लिए औपचारिक रुप से साथ आएंगे…और इसी बात पर सबसे ज्यादा शुबह है…क्योंकि कुर्सी युग में सियासी साथ की कोई गारंटी नहीं होती….बस देखते जाइये..सुविधा और सत्ता की राजनीति क्योंकि ये मजबूरी भी है…और राजनीति का मिजाज भी…



