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Wednesday, October 29, 2025

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फैशन का दौर हैं….

फैशन का दौर हैं….गारंटी की इच्छा नहीं करनी चाहिए…और अगर मामला सियासी होतो फिर तो बिलकुल भी नहीं..क्योंकि सियासत में किसी चीज की ना गांरटी होती और ना वारंटी….बदलते वक्त के साथ निष्ठाएं बदल जाती हैं…रिश्ते और समीकरण बदल जाते हैं…कसमें टूट जाती है…कथित विचारधारा का भ्रम चूर-चूर हो जाता है…चुनावी रुझानों के हिसाब झंडे बदल लिए जाते हैं….नारे बदल जाते हैं और बदल जाते हैं आका भी…अगर मौका चुनाव का हो तो ऐसे बदलाव ज्यादा देखने को मिलते हैं…डूबते जहाज में कोई सवारी नहीं करता है..कांग्रेस में कोहराम मचा है…भगदड़ मची है…नजारा अब आम होने लगा है….खुद कद्दावर कांग्रेसी हाथ का साथ छोड़कर  सोलहवीं लोकसभा में कमल खिलाना चाहते हैं…हैरत की बात तो ये कि बीजेपी को पानी-पी कर कोसने वाले…सोनिया और राहुल की चालीसा पढ़ने वाले भी बदल गए हैं….ये कांग्रेस की गिरती साख है….मोदी की लहर है….या सियासी जरुरतों के पूरी ना होने पाने की कसक….वजह कुछ भी हो पर सच्चाई यहीं है कि कांग्रेस के सिपाही चुनावी युद्ध में अपना सेनापति बदल रहे हैं…नए भारत के निर्माण में राहुल गांधी का साथ देना नहीं चाहते….बीजेपी को रोकने के लिए राहुल देशाटन कर रहे हैं….और कांग्रेस के ठोक बजाकर चुने गए उम्मीदवार मोदी मंत्र का जाप कर रहे हैं…मनमोहन सरकार के खुशनुमा आंकड़ों पर गुजरात मॉडल की व्याख्या भारी पड़ रही है….दुबले पर दो आसाढ़…कई नामी चेहरे तो 10 साल तक सत्ता का सुख भोगने के बाद मैदान में उतरने का साहस भी नहीं दिखा रहे है….और तो और जिन्हें टिकट मिली हैं वो  मैदान में हुंकार भरने की जगह नमोगान में लगे हैं…बीजेपी का दिल बड़ा है..दरवाजे भी बड़े कर लिए गए हैं..272 का सवाल हैं …सब चलेंगे..खरे भी खोटे भी…सब को मौका मिलेगा…पर जीत पक्की होनी चाहिए…रही बात विचारधारा की …तो उसका क्या है बदलती रहती है…मोदीछाप टोपी पहनकर कांग्रेसी भी राष्ट्रवादी हो जाते हैं…सालों की शपथ तोड़ने वालों को ज्यादा इनाम मिलता है…जमीनी कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज कर टिकट का प्रसाद दिया जाता है….दिल खोलकर पूर्व कांग्रेसी कांग्रेस को कोसते हैं…सोचिए बीजेपी के दिल को कितनी ठंडक मिलती है…और अहसास कीजिए कि कांग्रेस के सीने पर कैसे सांप लोटते होंगे…पर खेल खालिस सियासी है….मौका है…दस्तूर है..देखते जाइये सवाल मत पूछिएगा..कि कैसे रातों-रात विचार…आचार और व्यवहार बदल जाता है…कैसे वादों का सौदा हो जाता है…क्यों पार्टी का सच्चा सिपाही बागी हो जाता है…क्यों सत्ता का समीकरण विरोधियों को एक कर जाता है….बस इसे खेल समझिएगा….लेकिन याद रखिए मोहरे आप हैं..जिनसे खेला है….जिनकी भावनाओं का मोल किया जाता है..

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