मसला पुराना है..21 साल पुराना….अयोध्या बदल चुकी है…देश बदल चुका है….एक पीढ़ी जवान हो चुकी है….और मसला फिर से सुर्खियों में हैं..छिपे कैमरे में कैद किए कुछ बयानों के सामने आने के बाद विवादित ढांचा विंध्वस पर ठंडी पड़ चुकी बहस को फिर से हवा मिली है…2014 के गर्मी के आम चुनावों पर 1992 की सर्दी पर भारी पड़ रही है….कोबरा ने बीजेपी को डसा है….पहले चरण के मतदान के ठीक पहले….अब इस डंक का कितना असर होता है..ये नतीजे तय करेंगे…लेकिन स्टिंग के खुलासे और समय पर सवाल भी खड़े हो रहे हैं….धर्मनिरपेक्ष देश के इतिहास में 6 दिसंबर की घटना कालिख से कम नहीं…लेकिन सवाल ये भी है कि 21 साल बाद स्टिंग की जरुरत क्यों पड़ी..और इसे अभी ही क्यों सार्वजनिक किया गया…बीजेपी इसे कांग्रेस की साजिश बता रही है….ऑपरेशन जन्मभूमि के कर्ताधर्ता बहल इसे पत्रकारिता धर्म का 24 कैरेट का नमूना सिद्ध कर रहे हैं….और देश खामोशी से सब देख-सुन रहा है…नेताओं के सियासी चूल्हें की आग भड़क चुकी है…वोटों की रोटी पकाने का वक्त आ गया है…सेक्युलरिज्म का आईएसआई मार्का प्रमाण पत्र बांटा जाता है….सांप्रदायिकता का मुद्दा देश के दूसरे अहम मुद्दे पर भारी दिख रहा है… ये धर्मनिरपेक्ष देश की बानगी है….ये समता के समाज का नमूना है….ये मीडिया की कसौटी है…य़े सवालों का चक्रव्यूह है…धर्म की अफीम का असर कभी कम नहीं होता है…रास्ते अलग-अलग होते है…पर धर्मनिरपेक्ष देश की सियासत धर्मांधता से ही चलती है…यही सच है…सौ टका खरा सच…. छिपे कैमरे के मार्फत सच दिखाने का दावा किया गया है…21 साल के पहले के जख्म मवाद निकला है..अब ये जख्म कैसे भरेगा..कहना मुश्किल है….बेशक मीडिया का काम सच सामने लाना होता है…लेकिन सच के लाने के वक्त और तरीके पर भी सवाल उठते रहे हैं…और इस बार उठ रहे हैं…मौका है वोटों के धुव्रीकरण का…मुसलमानों का मसीहा बनिए…हिंदुओं का हृदय सम्राट बनिए…मुल्लाओं और मंहतों के जरिए सियासत करिए…मंदिर और मस्जिद के आंगनों में सियासी समीकरण बनाइये….क्योंकि देश से ज्यादा सत्ता जरुरी है…शांति और अमन से ज्यादा वोट जरुरी है….और ये भी सच है कि 2002 के दंगों से…मुजफ्फर नगर की सर्द आहों से….कोकराझार की सिसकियों से सबक नहीं लिया जाएगा क्योंकि वोट जरुरी है…



